Sunday, December 26, 2010

"श्री जगदीश सरन जी"

मैंने इक ज़िन्दगी की आखरी रात देखी,
क्या कहूं उस रात क्या बात देखी !
यूं तो उनके क़दमों में सारा जहान रहता था,
उस रात मैंने नम कायनात देखी !
जिस के इंतज़ार में खुली थी उनकी आँखें,
मैंने उस रिश्ते की आखिर ज़ात देखी !
इक ने खूब किया और इक ने हाथ भी ना दिया,
एक से ही रिश्तों की अलग बात देखी !
हर रिश्ता निभाया था उन्होंने दिल से,
मैंने उनके कुछ रिश्तों के अंत की शुरुआत देखि !
वही ज़िन्दगी जो कुछ दिन पहले उनके क़दमों में थी,
वही ज़िन्दगी मैंने बड़ी बदजात देखी !
वो हुए जुदा हमसे उस दिन, गम है, लेकिन
मैंने घर के खुदा की खुदा से मुलाकात देखी !
क्या कहूं उस रात क्या बात देखी !!
मैंने इक ज़िन्दगी की आखरी रात देखी !!

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