Saturday, July 17, 2010

"अंदाज़ दूसरा ही सही"

हर एक रंग में काटेंगे हम, सज़ा ही सही !

यह ज़िन्दगी किसी की बद - दुआ ही सही !

सवाल यह है की दारो - रसन (फांसी) का क्या होगा !

नहीं है इस से गर्ज़ के कोई बे-खता ही सही !

ना इस को भूल के मैंने तुझे किया तखलीक (पैदा) !

यह और बात है तू आज वक़्त का खुदा ही सही !

यही बहुत है के मुझ पर तेरी नज़र है !

तेरी निगाह का अंदाज़ दूसरा ही सही !

वो मेरी रूह में शरीक हो चुका है आज !

अगर वो मुझसे जुदा है तो चलो जुदा ही सही !!

Wednesday, July 14, 2010

"प्रिया, साथ चलते है !"

नित नए रंगों में ढलते हैं !
नित नए रूप वो बदलते हैं !
ऐसी दुनिया में रह के क्या लेना !
ऐसी दुनिया से हम तो चलते हैं !
उसने मुझको चुना जफा के लिए !
लोग इस बात पे भी जलते हैं !
बात इतनी सी हम नहीं समझे !
के आस्तीनों में सांप पलते हैं !
मेरी आँखों में झांक कर देखो !
आंसूँओ के चिराग जलते हैं !
तुम आई "प्रिया", तो कुछ आराम मिला !
चलिए कुछ दूर साथ चलते हैं !!