Tuesday, October 4, 2011

"ज़िन्दगी भी इक कलम है"

तू खुदा है, तुझे सुना है लेकिन देखा नहीं,
मै तो इंसान हूँ, क्या तुझे दिखता हूँ मै ?
यह कैसी ख्वाहिशें भर ली हैं सीने में मैंने,
जिन्हें पाने की खातिर रोज़ यहाँ बिकता हूँ मै !
सिखाया तो था तुने मुझे उठने का सलीका,
फिर यह कैसे सिले हैं, के खुद की नज़रों से ही गिरता हूँ मै !
वो ठहराव, यह रास्ता, वो मंजिल -यह क्या है ?
आना ही है तेरी महफ़िल में,तो यहाँ क्यों रुकता हूँ मै !
थोड़ी है के ज्यादा है,जितनी भी है बाकी,
आखरी दम तक तेरे लिए ही "रोहित" लिखता हूँ मै !
ज़िन्दगी इक कलम है और सिरे पे मौत भी है,
हर्फ़ से लफ्ज़ बन गया हूँ, अब देखिये किस रोज़ मिटता हूँ मै !!

Saturday, September 24, 2011

'कुछ दोस्त"

कुछ ऐसे दोस्त थे हम दोस्त, जो सपने जोड़ा करते थे
मासूमीअत की आघोष में,कई कायदे तोडा करते थे

तब छोटी आशाएं थी अपनी, तब छोटे ख्वाब थे अपने
पल पल जो संग बिताये थे, वो यादें जोड़ा करते थे

अजब से खेल थे अपने,बड़े खिलाडी होते थे
रेत के घरोंदे बनाते थे,पानी से तोड़ा करते थे

नन्हे हाथ पाँव थे,लेकिन ज़रा होंसला तो देखो
नदिया किनारे बैठ हम,पानी का रुख मोड़ा करते थे
कुछ ऐसे दोस्त थे हम दोस्त,जो सपने जोड़ा करते थे

अब कुछ ऐसे दोस्त हैं,जो सपने तोड़ा करते हैं
अपनों के सपने तोड़ कर,अपने घर जोड़ा करते हैं
हर बात में झूठ होता है, हर बार फरेब करते हैं
हर रोज़ वो वायदे करते है,हर रोज़ वो तोड़ा करते हैं
वो मेरे कतल की साजिश में है, हम वैसे ही उनपे मरते हैं
ऐसे लोगों की यारी से,"रोहित" हम तो डरते हैं।

Sunday, August 14, 2011

"मै कौन हूँ ?"

मै कौन हूँ ? यूं खुद से लड़ता क्यों हूँ ?
मुझे जब इल्ह्म ही नहीं बड़े हो के रहने का
तो फिर मै तमीज का पाठ पड़ता क्यों हूँ ?

मै कौन हूँ ? यूं हर पल मरता क्यों हूँ ?
कितनी साँसे किसकी लिखी है बाकी, यह तो खुदा जाने
मै फिर इस हिसाब में पड़ता क्यों हूँ ?

मै कौन हूँ ? यूं सहमता, यूं डरता क्यों हूँ ?
मेरा ही देश है और मै ही यहाँ महफूज़ नहीं
करता हूँ तो डरते हुए कुछ भी अच्छा करता क्यों हूँ ?

मै कौन हूँ ? यह सवाल खुद से करता क्यों हूँ ?
फिर दूरीयों ने जगह बनायीं है अपनों की अपनों के बीच
यह सबब जानता हूँ, तो फिर इतनी ऊँचाईया चदता क्यों हूँ ?

मै कौन हूँ ? खुद से लड़ता क्यों हूँ ?
सोचता तो हूँ के कुछ बुरा देख के रुक जाऊं
इक पल में ही भुला के मै आगे बढता क्यों हूँ ?

जब जीना ही है सब ने खुद में ही मसरूफ रह के
तो फिर मै "रोहित" तेरी परवाह करता क्यों हूँ ?
जानता हूँ के साँसों का हिसाब खुदा का है लेकिन,
फिर अपनों की जुदाई से मै डरता क्यों हूँ ?

Tuesday, August 9, 2011

जुदा हो गया, कैसा खुदा हो गया !!

मै तो उनसे मिलने से पहले ही जुदा हो गया,
ना-जाने वो कहाँ किस दुनिया का खुदा हो गया !!
मुझे तो बे-वफ़ा कह क इक किनारा कर दिया ,
वो तो बा-वफ़ा था,फिर क्यों गुमशुदा हो गया !!
आज सफ़र भी समंदर के किसी मंज़र से कम नहीं,
कश्ती तूफ़ान के मझधार में है,और ना-खुदा सो गया !!
क्या बात करू आज मै हैरत की तुझ पे सितमगर,
सोच अलग है,सोचने का अंदाज़ जुदा हो गया !!
खुदा ने कहा मै मिलाऊँगा तुझे "रोहित" , ना हो उदास
वो दिन है क तब से ना जाने कहाँ खुदा ही खो गया !!
हर वक़्त कतल होता हूँ,हर वक़्त जी उठता हूँ
जैसे क अब बीता वक़्त ही मेरा खुदा हो गया !!
चला था मै तो घर से दो दिलों के मिलन को,
और आज मै खुद,खुद से ही जुदा हो गया !!