Sunday, December 26, 2010

"श्री जगदीश सरन जी"

मैंने इक ज़िन्दगी की आखरी रात देखी,
क्या कहूं उस रात क्या बात देखी !
यूं तो उनके क़दमों में सारा जहान रहता था,
उस रात मैंने नम कायनात देखी !
जिस के इंतज़ार में खुली थी उनकी आँखें,
मैंने उस रिश्ते की आखिर ज़ात देखी !
इक ने खूब किया और इक ने हाथ भी ना दिया,
एक से ही रिश्तों की अलग बात देखी !
हर रिश्ता निभाया था उन्होंने दिल से,
मैंने उनके कुछ रिश्तों के अंत की शुरुआत देखि !
वही ज़िन्दगी जो कुछ दिन पहले उनके क़दमों में थी,
वही ज़िन्दगी मैंने बड़ी बदजात देखी !
वो हुए जुदा हमसे उस दिन, गम है, लेकिन
मैंने घर के खुदा की खुदा से मुलाकात देखी !
क्या कहूं उस रात क्या बात देखी !!
मैंने इक ज़िन्दगी की आखरी रात देखी !!

Saturday, December 25, 2010

"कुछ तो तेरे दिल में ज़रूर था"

मै तो फान्सलों की जानिब मंजिलों से दूर था,
तू तो पास था, ना जाने फिर क्यों मजबूर था ?
और भी दूर ना हो जाऊं तुझसे इसी लिए,
तेरे करीब आने का इज़हार दिल में ही रहा,
आज मालूम हुआ के,कुछ तो तेरे दिल में भी ज़रूर था !!!

यह फिकर, यह आँखों में चाहत ना होती,
तू मुझे देख कर इस कदर ना रोती
यूं अश्को से बयां ना होता प्यार,
इसको प्यार की जीत समझूं या ज़िन्दगी की हार,
कुछ तो मेरे प्यार में सरूर था,
आज दिखा के कुछ तो तेरे दिल में ज़रूर था !!!

तेरा हर वक़्त दोस्तों से घिरे रहना,
यह देख कर मेरे दिल का जलते रहना,
वो अदाएं इश्क की, गर्दिश की थी,
जान तो हर वक़्त मुश्किल में थी,
मै मसरूफ था अपने अकेलेपन में,
और तुझे अपनी महफिलों का गरूर था,
फिर भी कुछ तो तेरे दिल में ज़रूर था !!!