Saturday, September 24, 2011

'कुछ दोस्त"

कुछ ऐसे दोस्त थे हम दोस्त, जो सपने जोड़ा करते थे
मासूमीअत की आघोष में,कई कायदे तोडा करते थे

तब छोटी आशाएं थी अपनी, तब छोटे ख्वाब थे अपने
पल पल जो संग बिताये थे, वो यादें जोड़ा करते थे

अजब से खेल थे अपने,बड़े खिलाडी होते थे
रेत के घरोंदे बनाते थे,पानी से तोड़ा करते थे

नन्हे हाथ पाँव थे,लेकिन ज़रा होंसला तो देखो
नदिया किनारे बैठ हम,पानी का रुख मोड़ा करते थे
कुछ ऐसे दोस्त थे हम दोस्त,जो सपने जोड़ा करते थे

अब कुछ ऐसे दोस्त हैं,जो सपने तोड़ा करते हैं
अपनों के सपने तोड़ कर,अपने घर जोड़ा करते हैं
हर बात में झूठ होता है, हर बार फरेब करते हैं
हर रोज़ वो वायदे करते है,हर रोज़ वो तोड़ा करते हैं
वो मेरे कतल की साजिश में है, हम वैसे ही उनपे मरते हैं
ऐसे लोगों की यारी से,"रोहित" हम तो डरते हैं।