Saturday, July 17, 2010

"अंदाज़ दूसरा ही सही"

हर एक रंग में काटेंगे हम, सज़ा ही सही !

यह ज़िन्दगी किसी की बद - दुआ ही सही !

सवाल यह है की दारो - रसन (फांसी) का क्या होगा !

नहीं है इस से गर्ज़ के कोई बे-खता ही सही !

ना इस को भूल के मैंने तुझे किया तखलीक (पैदा) !

यह और बात है तू आज वक़्त का खुदा ही सही !

यही बहुत है के मुझ पर तेरी नज़र है !

तेरी निगाह का अंदाज़ दूसरा ही सही !

वो मेरी रूह में शरीक हो चुका है आज !

अगर वो मुझसे जुदा है तो चलो जुदा ही सही !!

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