Tuesday, January 17, 2012

"ज़िन्दगी से शिकायत क्यों ?"

तन्हाई नहीं है तो फिर उदासी क्यों है ?
आंसूओं में रही है ज़िन्दगी, फिर भी प्यासी क्यों है ?
जानता हूँ के वो बेवफा थी,ठुकरा कर चली गयी !
फिर भी उसके आने की आस ज़रा सी क्यों है ?
मै करता रहा तू जो कहती रही और खुद ज़िद पे है !!
ज़िन्दगी - तू आखिर इस तरह सी क्यों है ?
कोई दीवार भी नहीं,सर पे खुला आसमां है !
फिर यह घुटन ज़रा ज़रा सी क्यों है ?
मै जब भी चला तू मेरा साया बना, ए - गम !
"रोहित" पर ही तेरी निगाह सी क्यों है ?
सब को गले लगा कर मुझे भूल गयी, ए - तकदीर !
यह बता, तू इतनी बे - परवाह सी क्यों है ?
ज़िन्दगी -तू आखिर इस तरह सी क्यों है ?

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